
कोरोना वायरस ने सारी दुनिया को अपने ज़द में कर लिया है। 100 साल बाद ऐसी महामारी आई है जिसने दुनिया के परमाणु संपन्न देशों को घुटनों पर ला दिया है। एक बार को तो यह सोचना भी असंभव सा लगता है कि चिकित्सा विज्ञान के इतनी तरक्की के बाद भी इंसान इसका फैलाव नहीं रोक पाया।
1918 के स्पेनिश फ्लू और 2020 के कोरोना महामारी के बीच एक बड़ा अंतर यह है कि दुनिया ने काफी तरक्की कर ली है। सूचना क्रांति ने लोगों को जोड़ने का काम किया है। कोरोना काल के बाद की दुनिया में काफ़ी कुछ बदलने जा रहा है।
दुनिया भर के देश चीन को इसका जिम्मेदार मान रहे हैं तो चीन इसे अमेरिका और यूरोपीय देशों की साज़िश बता रहा है।

अगर इस विवाद को छोड़ भी दे तो एक बात काफी साफ नजर आती है कि चीन की सरकार ने एक डॉक्टर को इस बात का खुलासा करने की सजा ज़रुर दी जिस ने यह कहा था कि चीन में एक वायरस है जो एक से दूसरे व्यक्ति को संक्रमित करता है।
किसी देश में तानाशाही इसलिए लाई जाती है ताकि कभी कोई व्यक्ति या संगठन उस तानाशाह को चुनौती ना दे सके और उसका एकछत्र राज बना रहे। शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन विश्व में एक ताकतवर देश बनकर उभरा है परंतु उनकी सरकार का डॉक्टर लीं वेनलियांग के मुद्दे पर चुप रहना और उनको सजा देना यह बात जरूर बताता है कि चीनी सरकार की मंशा इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी साफ़ नहीं थी।
चलिए अब जबकि महामारी फैल ही गई है तो देखें कि इसके बाद की दुनिया में क्या-क्या बदलाव होने जा रहे हैं और इससे निपटने के लिए क्या करने की जरूरत है।
1. सतत विकास

कोरोना को हम प्रकृति का बदला समझकर शुरुआत कर सकते हैं। यह हमारे लिए सोचने का वक़्त है की कितनी तरक्की जरूरी है। क्या आप एक ऐसे शहर में रहना चाहते जहाँ सांस लेने के लिए साफ़ हवा ही ना हो।
जी हां, दिल्ली में पिछले साल प्रदूषण इतना बढ़ गया कि स्कूल बंद करने पड़े। कुछ बुजुर्गों की जान तो सांस ना ले पाने के कारण चली गई। निर्देश दिया कि सुबह को ना टहलें। कई समाचार चैनलों पर तो तुलना होने लगी कि दिल्ली की हवा में सांस लेने का मतलब 50 सिगरेट पीना है।
यह खबर इस बात की ओर इशारा करती है कि परिस्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया। कोरोना महामारी से होने वाली सारी समस्याओं के बीच एक खुशख़बरी यह है लॉकडाउन होने से प्रदूषण काफी हद तक कम हुआ है।
कई देशों के लोगों ने तो देह से दूरी बनाए रखने के लिए साइकिल का उपयोग करना शुरू कर दिया है। इससे गाड़ियों की संख्या जरूर कम हुई है। परन्तु इस बात का डर हमेशा रहेगा कि लॉकडाउन खुलने के बाद प्रदूषण बढ़ने की रफ़्तार और बढ़ जाएगी।
इसलिए सतत विकास के बिना किया गया विकास पर्यावरण पर बोझ ही साबित होगा।
2. स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था

विश्व भर के देश यह निश्चित करते हैं कि अगर कभी किसी देश के साथ युद्ध हो जाए तो हथियारों और सैनिकों की कमी नहीं पड़नी चाहिए। काश यही तैयारी स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी की गई होती।
इस महामारी ने तो जैसे दुनिया भर के मुल्कों की स्वास्थ सुविधाओं की पोल ही खोल कर रख दी। विकसित देशों में भी मरीजों के लिए बिस्तर कम पड़ गए।
दलील दी जा सकती है कि इतनी बड़ी चुनौती से लड़ने के लिए संसाधन हमेशा कम पढ़ने ही थे परंतु यह बात भी उतनी ही सही है कि अगर कोई देश एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध लड़ने के लिए हथियार और सैनिक तैयार रखता है तो फिर स्वास्थ्य क्षेत्र में क्यों नहीं कर सकता।
दो देशों के बीच युद्ध होना कोई आम बात नहीं लेकिन किसी मरीज का इलाज न मिल पाने के कारण मौत हो जाना काफी आम बात है।
इसलिए स्वास्थ सुविधाओं की उपलब्धता अनिवार्य है।
3. आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है

कोरोना काल से पहले भारत ज्यादातर चिकित्सा उपकरणों को विदेशों से मंगवाया करता था। कोरोना महामारी का संक्रमण एक देश से दूसरे देश में फैला तो सभी देशों ने अपनी सीमाएं बंद कर लीं और हवाई यातायात भी रोक दिया।
आपातकाल जैसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया था कि देश के युवा सामने आए और सरकार की मदद करें। आईआईटी और कई अन्य शिक्षण संस्थानों ने कई उपकरण बनाकर इस अभाव की पूर्ति की। ये उपकरण ना सिर्फ विदेशों से लाए जाने वाले उपकरणों से बेहतर थे पर उनसे सस्ते भी थे।
अगर आप किसी विकसित देश की तरक्की की कहानी पढने बैठेंगे तो पाएंगे की विश्व युद्ध के समय दुश्मन सेनाओं का सामना करने और उन्हें हराने के लिए कई वस्तुओं का अविष्कार किया गया। हाथ में पहने जाने वाली घडी इसका एक मुख्य उधारण है।
कोरोना काल ने इस ओर ध्यान जरुर दिलाया की भारतीय अभियंताओं की काबलियत हमेशा से ही थी। बस उन्हें आवश्यकता का बोध कराना था। अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो कृषि, उद्योग और कई अन्य क्षत्रों में नए उपकरण देखने को मिलेंगे।
आत्मनिर्भर बनने के लिए ये पहला कदम होगा।
4. टेक्नोलॉजी का महत्व

टेक्नोलॉजी का महत्व कोरोना वायरस के दौर में काफी बढ़ गया है। दुनिया भर के स्कूलों नें कक्षाएं ऑनलाइन लेनी शुरू कर दी हैं। हालांकि ऑनलाइन शिक्षा क्लास रूम शिक्षा का विकल्प कभी नहीं हो सकती परंतु ऑनलाइन शिक्षा ने यह जरूर सुनिश्चित किया है कि बच्चे कोरोना काल में शिक्षा से दूर ना हो जाए। कई बच्चों और उनके अभिभावकों ने इंटरनेट की क्षमता को समझा और भविष्य के सन्दर्भ में इसकी अनिवार्यता को स्वीकार भी किया।
हालांकि यह चर्चा का विषय जरूर बना रहेगा कि इतने बड़े देश में जहां कई बच्चों को पौष्टिक भोजन तक नसीब नहीं हो पाता वहां स्मार्ट फोन और इंटरनेट की कल्पना करना भी बेईमानी है।
ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी तो यहाँ तक कह दिया की जो कर्मचारी चाहें वे हमेशा के लिए घर से काम (work from home) कर सकते हैं। शायद आने वाले सालों में हम कार्य संस्कृति का ये स्वरुप कई और सेवा क्षेत्र की कंपनियों में देखेंगे।
5. बेरोजगारी का भीषण स्वरूप

कई अर्थशास्त्रीयों ने अनुमान लगाया है कि कोरोनावायरस के कारण सिर्फ भारत में लगभग 12 से 14 करोड़ लोग बेरोजगार होंगे। ज्यादा असर निजी कंपनियों और उनके कर्मचारियों पर पड़ेगा। हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद जरूर कुछ लोग वापस काम पर लौट जाएंगे पर कई लोगों के लिए नौकरी की तलाश जारी रहेगी।
शायद कोरोना काल के बाद बेरोजगारी दुनियाभर के नेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। भारत में इन्टरनेट सस्ते होने के बाद ये जरुर आशा की जा सकती है कि सेवा क्षेत्र में नए अवसर प्राप्त होंगे।
6.पर्यटन उद्योग

पर्यटन और होटल उद्योग से जुड़े लोगों के लिए यह काफी मुश्किल समय है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद उद्योग तो फिर से खुलने लगें है परंतु पर्यटन स्थल खुलने के बाद भी सूने पड़े हैं।
हालाँकि ये ज़रूर उम्मीद की जा सकती है कि वैक्सीन बनने के बाद यह क्षेत्र सबसे तेजी से विकास करेगा क्योंकि इतने दिनों तक घर में बंद रहने के बाद लोग जरुर चाहेंगे कि कहीं घुमने जाएँ।
पर वैक्सीन आने तक तो पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों के लिए जीवन कठिन होगा ।
7. देशों के बीच संबंध

कोरोना वायरस ने देशों के बीच के संबंध भी खराब कर दिए हैं। अमेरिका चीन तो पहले से ही व्यापार युद्ध में शामिल थे। कोरोना ने इस संकट को और उभार कर रख दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति का कोरोना वायरस को चीनी वायरस का नाम देना और चीनियों का अमेरिका पर इसके प्रसार का इल्जाम लगाना इस बात को साबित करता है कि इन दो बड़े मुल्कों के बीच काफी तनाव है।
दुनिया भर के देशों ने अपने कंपनियों को चीन से निकालने का ऐलान किया है, इससे तनाव और बढ़ने वाला है। इटली ने यूरोपीय संघ पर इल्जाम लगाया कि उन्होंने आपातकाल की स्थिति में उनके देश पर ध्यान नहीं दिया।
यह बात भी उतनी ही दिलचस्प है कि कोरोनावायरस ने संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया है। सारे देश आत्मनिर्भर बनने की सोचने लगे हैं। यह बात सही है की उदारीकरण ने काफी संभावनाएं प्रस्तुत कीं हैं परन्तु इसने कई मुल्कों को एक दूसरे पर निर्भर कर दिया है।
उदारीकरण ठीक उसी तरह है जैसे कोरोना वायरस का प्रसार। दुनिया का अगर कोई एक बड़ा देश इससे प्रभावित होता है तो पूरे विश्व को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
8.खेलों से दूरी

कोरोना ने खेलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। सारी खेल गतिविधिओं के रुक जाने से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। 2020 में टोक्यो, जापान में होने वाले ओलिंपिक खेल स्थगित कर दिए गए हैं जिससे खिलाड़ियों के सामने काफ़ी अनिश्चितता है।
लॉकडाउन ने उनके शारीरिक क्षमता पर काफी असर डाला है। खेलों को पुनः शुरु होने में काफी समय लग सकता है क्योंकि बिना दर्शक के खेल ठीक वैसे ही हैं जैसे बिना इन्टरनेट के स्मार्ट फ़ोन।
कई खेलों में तो नियम भी बदले जाने लगे हैं। ये देखने वाली बात होगी की नतीजों पर इसका कितना असर होता है।
और अंत में
कोरोना ने दुनियाभर की सरकारों की परीक्षा ली है। सारे देश की नीतियाँ पूर्वनिर्धारित होती है और नेता उसे लागू करने की कोशिश करते हैं। पर कोरोना ने जरुर यह परीक्षा ली है किअचानक आपातकाल जैसी स्तिथि होने पर कौन सा नेता किस तरह प्रतिक्रिया करता है।
दुनिया के कई शीर्ष नेताओं ने तो कोरोना को बिल्कुल ही नज़रअंदाज कर दिया जिससे उनके देश में हुए मौतों की संख्या बाकि देशों के मुकाबले अधिक हुई। अब नेतृत्व क्षमता ही यह निर्णय लेगी कोन सा देश कितनी जल्द पटरी पर लौट पाता है।
हमें आशा करनी चाहिए की कोरोना काल के बाद लोग पर्यावरण के प्रति और संवेदनशील होंगे तभी एक सुरक्षित भविष्य की कल्पना की जा सकेगी।