
परिचय
‘आज़ादी के बाद का भारत’, आज़ादी के बाद के भारत में घटने वाले घटनाक्रमों का एक सजीव चित्रण है।
भारत की आज़ादी के करीब 75 वर्ष पूरे होने वाले हैं और हम नौजवानों को ये समझाना काफी महत्वपूर्ण है की ये आज़ादी जो हमें मिली है वह मुफ्त में नहीं मिली है।
आज़ादी के संघर्षो के बारे में तो आपने स्कूल के दिनों से ही काफी पढ़ा और सुना होगा।वे कुर्बानियों और आन्दोलनों के किस्से जो हमें भारतीय होने पर गर्व कराते हैं।
पर क्या आपने आज़ादी के बाद के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश की?
क्या हम आज़ादी के बाद सही रास्ते पर चले? क्या जिन समस्याओं के हल के लिए हम संघर्ष कर रहे थे, वे हम हासिल कर पाए?
हमारा संघर्ष सिर्फ स्वायत्ता हासिल करने तक ही सिमित था या हम तरक्की और विकास की कल्पना भी कर रहे थे?
इन सवालों के ज़वाब इस पुस्तक में मिलते हैं।
क्या वाकई भारत ने तरक्की की है और दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के तुलनात्मक विकास किया है? भारत अपनी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे करने वाला है और ये सही वक़्त है की हम एक बार पीछे घूम कर देखे की हमने क्या पाया और क्या खोया है?
1947 का विभाजन हों या 1975-1977 का आपातकाल, 1974 का परमाणु परीक्षण हो या 1999 कारगिल का युद्ध, काफ़ी कुछ है जो हमारी पीढ़ी ने नहीं देखा है।
बहुत सारी कहानियां हैं जिनके बारे में हमें विस्तार से जानने की ज़रूरत है और ‘आज़ादी के बाद का भारत’ पुस्तक के द्वारा बिपिन चन्द्र, मृदुला मुखर्जी और आदित्य मुखर्जी ने काफी अच्छी तरह उन घटनाओं का वर्णन किया है |
किताब पढने के कुछ मुख्य कारण
पिछले कुछ वर्षो में युवाओं का रुझान राजनीती की तरफ बढ़ा है।
वे राजनीती में काफी दिलचस्पी लेने लगे हैं और वर्त्तमान स्तिथि को समझना चाहते हैं।
चुनाव प्रचारों में आपातकाल का जिक्र, नेहरु युग, इंदिरा युग के आलावा जे पी आन्दोलन, कारगिल का जिक्र काफी बढ़ा है।
हम 1990 के बाद के छात्रों के लिए परिस्थितियाँ काफी हद तक बदल चुकीं हैं।
लकिन उन घटनाक्रमों का अध्यन हमें अपने देश के और करीब लाने में मदद करेगा।
आपको यह जान कर काफी आश्चर्य होगा की आज़ादी के काफी वक़्त बाद तक कई राजनितिक पार्टियों ने केंद्रीय शासन को मानने से इंकार कर दिया था ।
कई राज्यों ने तो भारत में विलय से ही इंकार कर दिया और स्वायत्ता चाहते थे।
फिर भी कुछ था जिसने हमें अलगाव के रास्ते नहीं जाने दिया।
कुछ महत्पूर्ण प्रश्न
- क्या देश में गरीबी इन 75 वर्षों में कम हुई हैं?
- आज़ादी की वक़्त देश के आर्थिक हालात कैसे थे?
- किन परिस्थितिओं में चीन और पाकिस्तान से युद्ध हुआ?
- किन परिस्थितिओं में इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगाया?
- क्या किसान आज़ादी के वक़्त जहाँ थे आज भी वही है?
- ‘अमूल’ ने कैसे भारत में नयी संभावनाओं को जन्म दिया?
विद्यार्थियों के लिए
किसी 15-25 साल के विद्यार्थी के लिए ये काफी आम बात होगी की भारत कितना बड़ा और विविध है।
वे अपने लेखों में उत्तर-पश्चिम-पूर्व-पश्चिम में मौजूद विभिन्नता में एकता में गुणगान किया करते होंगे।
पर ये संभव होने में काफी योगदान और संघर्ष रहा है।
आज सभी राजनितिक पार्टियाँ संविधान को स्वीकार करतीं हैं और सत्ता पाने के लिए चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेती हैं।
वें गठबंधन करतीं हैं और संसद में चर्चाओं में भाग लेकर हमारे गणतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत भी करतीं हैं।
ये सारी व्यवस्थाएँ हमने एक दिन में हासिल नहीं कीं हैं।
काफी प्रयोग किये गए हैं राज्यों , केंद्र और संघटनों के द्वारा तब जाकर हमें एक प्रणाली मिली है जो देश को तरक्की की और ले जा रही है।
आप सब को ये जान कर काफी आश्चर्य होगा की दुनिया की कई व्यवस्थाएँ भारत को एक सफल प्रयोग मानतीं हैं।
वे इससे प्रेरणा भी लेतीं हैं इस उम्मीद में की वे भी अपने देश में मौजूद विविधता को समाहित कर सके।
बिना विभाजित हुए इतने साल विकास करना अपने आप में एक काबिलेतारीफ बात है।
हाँ , क्या विकास और तेज हो सकता था ये एक चर्चा का विषय जरूर है।
आम प्रतियोगी परीक्षार्थियों से अनुरोध है की वे इस पुस्तक को ज़रूर पढ़ें।
तारीखें याद करने के चक्कर में हम काफी कुछ पीछे छोड़ देते हैं। देश का इतिहास एक जागरूक नागरिक पैदा करता है।